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प्रत्येक हिंदू वर्ष में चार नवरात्रियां आती हैं, जिनमें से दो प्रकट और दो गुप्त होती हैं

नवरात्रि
प्रत्येक हिंदू वर्ष में चार नवरात्रि यां आती हैं, जिनमें से दो प्रकट और दो गुप्त होती हैं। चैत्र और आश्विन माह में क्रमशः वासंतिक और शारदीय प्रकट नवरात्रि आती हैं तथा माघ और आषाढ़ माह में गुप्त नवरात्रि आती हैं।
इस बार आषाढ़ी गुप्त नवरात्रि 11 जुलाई से 18 जुलाई 2021 तक रहेगी ।
आषाढ़ नवरात्रके दौरान हम सब मिलकर प्रतिदिन श्री सप्तश्लोकी दुर्गा का पाठ करें ।।
अथ सप्तश्लोकी दुर्गा
शिव उवाच
देवि त्वं भक्तसुलभे सर्वकार्यविधायिनी ।
कलौ हि कार्यसिद्ध्यर्थमुपायं ब्रूहि यत्नतः ।।
भावार्थ:- शिवजी बोले – हे देवी ! तुम भक्तों के लिए सुलभ हो और समस्त कर्मों का विधान करने वाली हो । कलियुग में कामनाओं की सिद्धि हेतु यदि कोई उपाय हो तो उसे अपनी वाणी द्वारा सम्यक् रूप से व्यक्त करो ।
देव्युवाच
श्रृणु देव प्रवक्ष्यामि कलौ सर्वेष्टसाधनम् ।
मया तवैव स्नेहेनाप्यम्बास्तुतिः प्रकाश्यते ।।
भावार्थ:- देवी ने कहा- हे देव! आपका मेरे ऊपर बहुत स्नेह है । कलियुग में समस्त कामनाओं को सिद्ध करनेवाली जो साधन है वह बतलाऊंगी सुनो ! उसका नाम है (अम्बास्तुति) ।
ॐ अस्य श्रीदुर्गासप्तश्लोकीस्तोत्रमन्त्रस्य नारायण ऋषिःअनुष्टुप् छन्दः, श्रीमहाकालीमहालक्ष्मीमहासरस्वत्यो देवताः, श्रीदुर्गाप्रीत्यर्थं सप्तश्लोकीदुर्गापाठे विनियोगः ।
भावार्थ:- ॐ इस दुर्गासप्तश्लोकी स्तोत्र मन्त्र के नारायण ऋषि है, अनुष्टुप् छन्द है श्रीमहाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती देवता है, श्रीदुर्गा की प्रसन्नता के लिए सप्तश्लोकी दुर्गा पाठ में इसका विनियोग किया जाता है ।
ॐ ज्ञानिनामपि चेतांसि देवी भगवती हि सा ।
बलादाकृष्य मोहाय महामाया प्रयच्छति ।।१।।
भावार्थ:-  भगवती महामाया देवी ज्ञानियों के भी चित्त को बलपूर्वक खींचकर मोह में डाल देती हैं ।
दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तोः,
स्वस्थैः स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि । दारिद्र्यदुःखभयहारिणि का त्वदन्या,
सर्वोपकारकरणाय सदार्द्रचित्ता ।।२।।
भावार्थ:- मां दुर्गे ! आप स्मरण करने पर सब प्राणियों का भय हर लेती है और स्वस्थ पुरूषों द्वारा चिन्तन करने पर उन्हें परम कल्याणमयी बुद्धि प्रदान करती है । दुःख दरिद्रता और भय हरनेवाली देवी ! आपके सिवा दूसरी कौन है, जिसका चित्त सबका उपकार करने के लिए सदा ही दयार्द्र रहता हो ।
सर्वमङ्गलमङ्गल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके ।
शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोस्तु ते ।।३।।
भावार्थ :- नारायणी ! तुम सब प्रकार का मंगल प्रदान करने वाली मंगलमयी हो । कल्याणदायिनी शिवा हो । सब षुरूषार्थों को सिद्ध करने वाली हो । शरणागत वत्सला, तीन नेत्रों वाली एवं गौरी हो। तुम्हें प्रणाम है ।
शरणागतदीनार्तपरित्राणपरायणे      ।
सर्वस्यार्तिहरे देवि नारायणी नमोस्तु ते ।।४।।
भावार्थ:- शरण में आये हुए दोनों एवं पीडितों की रक्षा में संलग्न रहनेवाली तथा सबकी पीडा दूर करनेवाली नारायणी देवि ! तुम्हें प्रणाम है ।
सर्वस्वरूपे सर्वेशे सर्वशक्तिसमन्विते ।
भयेभ्यस्त्राहि नो देवि दुर्गे देवि नमोस्तु ते ।।५।।
भावार्थ:- सर्वस्वरूपा, सर्वेश्वरी तथा सब प्रकार की शक्तियों से सम्पन्न दिव्य रूपा दुर्गे देवि ! सब भयों से हमारी रक्षा करो, तुम्हें प्रणाम है ।
रोगानशेषानपहंसि तुष्टा,
रूष्टा तु कामान् सकलानभीष्टान् ।
त्वामाश्रितानां न विपन्नराणां,
त्वामाश्रिता ह्याश्रयतां प्रयान्ति ।।६।।
भावार्थ :- देवि ! तुम प्रसन्न होने पर सब रोगों को नष्ट कर देती हो और कुपित होने पर मनोवांछित सभी कामनाओंका नाश करती हो । जो लोग तुम्हारी शरण में जा चुके हैं, उन पर विपत्ति तो आती ही नही । तुम्हारी शरण में गये हुए मनुष्य दूसरों को शरण देनेवाले हो जाते हैं ।
सर्वाबाधाप्रशमनं त्रैलोक्यस्याखिलेश्वरि ।
एवमेव त्वया कार्यमस्मद्वैरिविनाशनम् ।।७।।
भावार्थ:- सर्वेश्वरि ! तुम इसी प्रकार तीनों लोकों की समस्त बाधाओं को शान्त करो और हमारे शत्रुओं का नाश करती रहो ।
।। इति सप्तश्लोकी दुर्गा सम्पूर्णा ।।
  • Nikunj Maharaj, Dakor
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